“शादी के बाद- मिथिला दर्शन” ( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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शादी के दूसरे दिन बाराती 7 और 1 मेरे पिता जी और 1 मेरे बड़े भाई की विदाई हुई ! सभी लोगों को लाल -लाल धोती पहनाई गई ,कुर्ता और मिथिला पाग दिया गया ! भोजन कराया गया ! सारे लोग जमीन पर बैठे ! यह भोजन एक घंटा तक चला ! बारात पार्टी सिर्फ 9 थे ! खाना जमके खाने के बाद मिठाईओं का दौर चला ! और मिठाई को छोड़ लोगों ने 60,70 रसगुल्ले खाए ! खाना यदि कम खाएंगे तो पिलखवाड गाँव का नाक कट जाएगी ! बिहार के मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला में खाना और खिलना प्रतिष्ठा की बात होती है ! मेरे ससुराल शिबीपट्टी में आम के बगीचे थे ! 29 जून 1974 का दिन था ! उस साल मालदह और कृष्णभोग खूब फले थे ! आम पहले से ही तोड़बा कर पकने छोड़ दिया गया था ! उसके सिर्फ मुँह को काटके पानी भरे बाल्टी में रखा गया था ! दही प्रचुर मात्रा में दिया गया वह भी बार -बार जिद्द करके ! अब बारी आयी आम की ! 20,30 आम तो आम बात थी ! रामचंद्र ठाकुर तो 50 आम खा गए !
भोजन के बाद पान सुपाड़ी दिया गया ! फिर सुहाग की प्रथा थी ! लड़की को आँगन में बिठाया जाता है और सारे लोग एक साथ लड़की को देखते हैं ! बारातिओं की ओर से मेरे पिता जी ने इकठठे 500 रुपये लड़की को मुँहदेखना दे दिया ! उसके बाद शिबीपट्टी गाँव के लोगों ने बाराती को स्वागत के साथ बिदा किया !
मुझे अकेले रीति -रिवाज के लिए रुकना पड़ा ! बैसे शादी के बाद महीने भर लड़के को ससुराल में रुकने की रीति चली आ रही है ! कोई यदि कम रुका तो गाँव में चर्चा होने लगती थी कि –
“लड़का नाराज है वरना इतना जल्दी क्यों चला गया ?”
सही में मिथिला में जमाई को भगवान मानते हैं ! पता नहीं यह धारणा प्रभु रामचंद्र के समय से चली आ रही है ! सुबह -सुबह साली सरहज आकर उठती थी ! बड़ी ग्लास में एक ग्लास दूध देते थे, साथ -साथ काजू किसमिश ! हठठे -कठठ्ए साले हाथ में काँसे के लोटे में पानी लेते थे और मुझे दूर खेतों की पगदंडियों पर ले जाकर छोड़ देते थे ! टॉइलेट खेतों में ही करना पड़ता था ! आने के वक्त लोटा मेरे हाथों से ले लेते थे ! घर पहुँचकर हाथ -पैर धुलवाते थे ! फिर जलखय ,दोपहर में भोजन ,शाम को नास्ता और रात को खाना !
सुबह घर और पड़ोस की महिलायें और युवतियाँ आकर आँगन में मधुर स्वर में “पराती” गाने लगती थी ! कम से कम तीन “पराती” महिलायें गातीं थी ! उनलोगों के मधुर गीतों का आनंद लेता था ! मैथिली गीत ,मैथिली मधुर भाषा ,आचार -विचारों ने ही मुझे आकर्षित किया ! मधुर गीत सुनकर जग गए ! पुनः 9 बजे महिलाओं का गीत नाद ! आशा को नित्य दिन गौरी पूजन करना पड़ता था ! 12 बजे भी महिलाओं का पारंपरिक गीत होता था पर इस गीत में मुझे और मेरे सारे परिवारों के सदस्यों को गाली दी जाती थी ! और खाना खाते यदि मैंने खाना बंद कर दिया तो गलिओं की झड़ी लग जाती थी ! फिर शाम को “महूहक” होता था ! कोबर घर में दो थालियाँ खीर की प्रत्येक शाम चार दिनों तक रखी जातीं थीं ! एक मेरा होता था और दूसरा मेरी आशा की ! थालियाँ बदली जातीं थीं जो एक खेल का हिस्सा होता था ! पीछे ध्यान बँटाने के लिए साली होती थी ! वह बिल्ली बनकर “मिआउँ ….. मिआउँ” करती थी ! उसे भी पीठ के पीछे खीर का एक दो नवाला देना पड़ता था !
चतुर्थी यानि चार दिनों तक नियम निष्ठा बनाए रखनी की प्रक्रिया थी ! चार दिनों तक भोजन में पति और पत्नी को नमक बर्जित था ! स्नान तक नहीं करना था ! मैं चौकी पर सोता था और मेरी आशा जमीन पर अपनी मौसी के साथ सोती थी ! उनकी मौसी हमलोगों की “विधकरी” थी ! धोती और कुर्ता मेरा तीन दिनों तक बदला नहीं गया !
आशा से मेरी बातें तक नहीं होती थी ! बैसे मैंने कई बार संकेत में विधकरी मौसी को कहा –
“ पाँचमे दिन मैं चला जाऊँगा!”
“ आपलोगों का चौथे दिन फिर से शादी होगी ! आप लोग स्नान और कपड़े बदलेंगे ! नमक खाएंगे ! फिर अपनी आशा से बातें कर लीजिएगा!” -मौसी ने जवाब दिया !
चतुर्थी के बाद दूसरे दिन मैं बिदा लिया ! गाँव के सारे लोग मुझे छोड़ने आए ! सब बड़े लोगों को झुककर प्रणाम किया ! जाते -जाते वादा किया चिठ्ठी लिखता रहूँगा ! शादी के बाद मधुर यादों को सँजोये लखनऊ के लिए चल पड़ा !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
30.11.2023