शातिर हवा के ठिकाने बहुत!
है शातिर हवा के ठिकाने बहुत!
है मेरे नशेमन में नशे के मुहाने बहुत!!
सर्द हवाओं के झोंके लगते है तीरे नश्तर!
इसलिये हैं पीने-पिलाने के बहाने बहुत!!
गरीबो को मयस्सर नहीं है ,चादर-रजाई!
और रइसो के वास्ते है मयखाने बहुत!!
बोधिसत्व कस्तूरीया एडवोकेट कवि पत्रकार सिकंदरा आगरा 282007 मो;9412443094