Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Apr 2017 · 2 min read

शांति की ओर……

यादों के झरोखे से ——-

शांति की ओर

मैं कभी मग़रूरी नहीं हुआ, शत प्रतिशत सच है । परन्तु मुझमें आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा था और वह इसलिए कि भगवान के प्रति श्रद्धा, श्रम के प्रति विश्वास और कार्य के प्रति निष्ठा मुझमें बचपन से ही थे और आज भी हैं ।
और इसी की बदौलत मैंने संकल्प लिया था कि करने से क्या नहीं हो सकता है, असम्भव से असम्भव कार्य को सम्भव करके सफलता हासिल की जा सकती है ।
तो फिर किशोर वय से लेकर युवा वय की ओर बढ़ते हुए जो सफलता मैंने हासिल की उससे मेरे विश्वास को कुछ और ही सह मिला । फिर परिणाम स्वरूप एक निम्न वर्गीय परिवार का एक साधारण युवा होने के बावजूद मैंने बहुत ही बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएँ, ऊंची-ऊंची कल्पनाएँ व लम्बे-लम्बे सपने पाल लिये। फिर इन्हें संजोए हुए तन-मन-धन से अपने लायक कर्मक्षेत्र की ओर कूद पड़ा, लेकिन थोड़ी बहुत बस थोड़ी सफलता के बाद सफलता के सारे दरवाज़े मेरे लिए सदा के लिए बंद हो गए । सफलता तो एक झलक दिखाकर जो तब से ओझल हुई तो फिर अबतक नज़र नहीं आई । एक लंबा अर्सा हो गया, कई अन्तराल व कई घटनाक्रम गुजर गए, लेकिन आज भी वह सफलता जो मेरे कदमों पर लोटा करती थी, मैं जिसकी कद्र करता था, इज्जत बक्शता था, वह पता नहीं किस घने बादल की ओट में छुप गई कि वह आज तक मुझे नहीं दीखी ।
आशावादी हूँ, इसलिए दिल में उम्मीद के दीए अब तक जलाए रखे थे । परन्तु अब तो असम्भव-सा लगता है । बहुत टूट चुका हूँ, सच्चाई से बहुत दूर निकल चुका हूँ, आत्मविश्वास डोल चुका है, विश्वास ख़त्म हो चुका है, अपने आप से गिर चुका हूँ ।
ये मेरी उच्च महत्वाकांक्षाएँ, ये मेरी ऊंची उड़ान, ये मेरी कोरी कल्पनाएं मुझे खुशियाँ तो दे न सकीं । हाँ, इनकी बदौलत मैंने ढेर सारे ग़म, दर्द, दुख और उदासियाँ हासिल की हैं, जिन्हें अब तक कंधों पर लिए ढोए रहा हूँ…….और आज जब मेरी सुबुद्धि खुली है, सद्विवेक जगा है, आत्मज्ञान हुआ है तो पौराणिक ग्रंथ भागवत गीता के अन्तर्गत भगवान श्री कृष्ण की कही गई यह देववाणी- “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदचिन:” मेरे दिलो दिमाग में बार-बार कौंध रही है और मैं शुरू की तरह एक बार पुन: संकल्प लेता हूँ कि, सच में मेरे अंदर “कला और साहित्य” है व मैं इसे पूजता हूँ तो एक प्यासा की तरह मृगमरीचिका की ओर भागना छोड़कर अपने कर्म को पूजा समझ के श्रद्धा, विश्वास व निष्ठा के साथ “कला और साहित्य”
को पुजते जाऊँ, इसकी सेवा करते जाऊँ और फल की कामना से कोसों दूर चला जाऊँ, बहुत
दूर, कोसों दूर……. !

===============
दिनेश एल० “जैहिंद”
23. 04. 2017

Language: Hindi
444 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एहसास.....
एहसास.....
Harminder Kaur
कैसे वोट बैंक बढ़ाऊँ? (हास्य कविता)
कैसे वोट बैंक बढ़ाऊँ? (हास्य कविता)
Dr. Kishan Karigar
जब-जब मेरी क़लम चलती है
जब-जब मेरी क़लम चलती है
Shekhar Chandra Mitra
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
कवि रमेशराज
कवि को क्या लेना देना है !
कवि को क्या लेना देना है !
Ramswaroop Dinkar
आज फिर किसी की बातों ने बहकाया है मुझे,
आज फिर किसी की बातों ने बहकाया है मुझे,
Vishal babu (vishu)
"माँ की छवि"
Ekta chitrangini
जिज्ञासा
जिज्ञासा
Dr. Harvinder Singh Bakshi
*पाना है अमरत्व अगर तो, जग में सबसे प्यार करो 【मुक्तक】*
*पाना है अमरत्व अगर तो, जग में सबसे प्यार करो 【मुक्तक】*
Ravi Prakash
" सब भाषा को प्यार करो "
DrLakshman Jha Parimal
Just lost in a dilemma when the abscisic acid of negativity
Just lost in a dilemma when the abscisic acid of negativity
Sukoon
निरुद्देश्य जीवन भी कोई जीवन होता है ।
निरुद्देश्य जीवन भी कोई जीवन होता है ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
#वंदन_अभिनंदन
#वंदन_अभिनंदन
*Author प्रणय प्रभात*
Quote
Quote
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रक्षा बन्धन पर्व ये,
रक्षा बन्धन पर्व ये,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
एक नज़्म - बे - क़ायदा
एक नज़्म - बे - क़ायदा
DR ARUN KUMAR SHASTRI
शिव स्तुति
शिव स्तुति
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
*
*"नमामि देवी नर्मदे"*
Shashi kala vyas
पंक्षी पिंजरों में पहुँच, दिखते अधिक प्रसन्न ।
पंक्षी पिंजरों में पहुँच, दिखते अधिक प्रसन्न ।
Arvind trivedi
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
मुक्तक।
मुक्तक।
Pankaj sharma Tarun
नया सवेरा
नया सवेरा
नन्दलाल सुथार "राही"
परों को खोल कर अपने उड़ो ऊँचा ज़माने में!
परों को खोल कर अपने उड़ो ऊँचा ज़माने में!
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
जल सिंधु नहीं तुम शब्द सिंधु हो।
जल सिंधु नहीं तुम शब्द सिंधु हो।
कार्तिक नितिन शर्मा
3309.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3309.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
आखिर वो तो जीते हैं जीवन, फिर क्यों नहीं खुश हम जीवन से
आखिर वो तो जीते हैं जीवन, फिर क्यों नहीं खुश हम जीवन से
gurudeenverma198
हसीब सोज़... बस याद बाक़ी है
हसीब सोज़... बस याद बाक़ी है
अरशद रसूल बदायूंनी
Red is red
Red is red
Dr. Vaishali Verma
संगीत................... जीवन है
संगीत................... जीवन है
Neeraj Agarwal
अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
प्रीतम श्रावस्तवी
Loading...