शहीद दिवस
मात्र भूमि की खातिर अपनी जान गंवाने वाले।
स्वतंत्रता की आग में परवानों से जल जाने वाले।।
धधक उठी उर में ज्वाला, सुलग उठे आंखों में शोले।
जलियाबाले बाग में देखो जिसने बरसाए थे गोले।
घर में घुसकर उसको मारा शपथ यही तो खाई थी।
मात्र भूमि का कर्ज उतारा, केशरिया रंग भरने वाले।
मात्र भूमि की खातिर अपनी जान गंवाने वाले।
धन्य भूमि पावन भारत की, जिसमें जन्मे वीर अनेक।
कितने सिर कटे युद्ध में, फांसी चढ़ गए वीर अनेक।
था जुनून आजादी का दिल में, अभी नई तरुणाई थी।
एक हाथ में शस्त्र उठाकर, वन्देमातरम गाने वाले।।
मात्र भूमि की खातिर अपनी जान गंवाने वाले।
भूले से भी भूल ना जाना, कर्ज उन वीर शहीदों का।।
नव नभ में लिखी नई इबारत, आजादी के मतवालों का।
चढ़ गए फांसी हंसते हंसते,भारत माता हरसाई थी।।
वंदे मातरम गा गा कर, पत्थर से टकराने वाले।।
मात्र भूमि की खातिर अपनी जान गवाने वाले।।
उमेश मेहरा (शिक्षक)
गाडरवारा ( m,p,)
9479611151