शहीद का गांव
चलकर गया था जो शान से, अपने कर्मक्षेत्र को, ताबूत में होकर बंद तिरंगे के साथ कंधो पे आया है।
संघर्ष में होकर शहीद सहर्ष मातृभूमि की बलवेदी पर
अपनों से मिलने वह अपने शहर अपने गांव आया है।
किसको नहीं है गुमां? इस धरती के इस लाल पर
गुम न होगा कभी उसका नाम, ऐसा नाम कमाया है।
“यह तन इस वतन के लिए है,’ मेरी मां ने सिखाया था धरती ने अन्न धन ज्ञान, तो मेरी मां ने प्यार लुटाया है।
गर्व है गुमान है अभिमान है भारत मां के ऐसे सपूतों पर
माता मातृभूमि जन्मभूमि के हेतु देश के काम आया है।
मरते -मरते भी उसने मारा था, दुश्मनों का दर्प दला था
शत्रु की लगी थी जब गोली, उसने न पीठ दिखाया है।
सरहद का सिपाही था, अग्रिम पंक्ति में हरदम रहता था
बेरुख हवाओं को भी उसने अपना कर्तव्य दिखाया है।
थलवीर जलवीर नभवीर अग्नि वीर या कि रणवीर
सबने राष्ट्र रक्षा में रणभूमि में अपना रक्त बहाया है।
कोई नहीं ऐसा, जिसकी आंखे न भर -भर आयी है
गांव-घरों में कई दिनों तक भर पेट भोजन न खाया है ।
सबका दिल जीता है, सबने फूलों का हार पहनाया है
जो जहां सुना बिना वक्त गंवाए, यहां दौड़ा आया है।
मेरे चमन में सुमन खिलता रहे ऐसा बगान लगाया है
समर्पित है, न्योछावर है जां, जिसने मुझे जिलाया है।
श्रद्धावनत है जन -जन के आनन अपने वीर सपूतों पर
दिल में रहोगे भाई, जन – सैलाब उमड़ कर आया है।
धन्य- धन्य है उनका जीवन, जो आजीवन नियमित ही
अपनी धरती की माटी का चंदन मस्तक पर लगाया है।
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@स्वरचित: घनश्याम पोद्दार
मुंगेर