शहीदों को मेरा है शत शत नमन
जिंदगी देश हित कर गये जो हवन
उन शहीदों को मेरा है शत् शत् नमन
इश्क था इस कदर मुल्क के बाग से
जान दे कर खिलाया गुलों का चमन
खून से तरबतर जिस्म जब हो गये
ओढ़ कर आ गये थे तिरंगा कफ़न
ख्बाव कुछ तो शहीदों के साकार हो
देश मे बढ़ सकें काश चैनो अमन
सर कटाने पड़े जब हमें हर घड़ी
बंद हो तो मुलाकात का ये चलन
शॉल का मूल्य था खून से क्यों बड़ा
पूछता है तिरंगे मे लिपटा ललन
याद मे तुम हमारी लिखो कुछ शरद
भूल जायें न हमको ये प्यारा वतन
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शरद कश्यप ” शरद “