शहादत
खून बहता रहा वतन के नाम पे
एक माँ भी बैठी रही अपने बेटे की राह में
मासूम के सर से साया गया
दुल्हन का सिंदूर और बहन की राखी गयी
किसी भाई की बाजू गयी
बदला तो मिल जाएगा
पर क्या जाने वाला भी
कभी लौट कर आयेगा
और खून बहता रहा वतन की राह में ।
शहादत का मोल क्या है किसी के हिसाब में
मैं पूछ सकता हु किसी भरतीय से
कब तक मिटेगा सिपाही वतन की राह में
एक हुंकार होनी चाहिए
एक इनकार होना चाहिये
बस एक बात याद रखना
बस कोई भाई अब शहीद नही होना चाहिए
कलम नग़मे लिखती रही हमेशा
पर कांपती है वो कलम जिसमे
जिसमे शहीद लिखना चाहिए
सच तो ये है शहादत को ही
वास्तव में सम्मान चाहिए
वतन को मजहब को
छोड़कर
सिर्फ एक मजहब
भारतीय होना चाहिए
मुझको शहीदों की
शहादत का हिसाब चाहिए।
ये कोई पहली दफा नहीं है
ये कोई वफ़ा नही है
शेरों के हाँथ पाँव बांध देते हैं
उसकी हुंकार को भी घोट देते है
आत्म रक्षा में भी सवाल खड़े करते है
फिर कहीं से कुछ भेड़ियों
का झुंड आता है
पीठ पीछे से शेर पर वार करता है
कुछ लोग इसकी निंदा करते है
वतन की राह पर ये कहानी
हर बार दिखती है
अब हमें ये बदलाव चाहिये
मुझको शहीदों की
शाहदत का हिसाब चाहिए।
शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि।
जय हिंद।