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22 Dec 2020 · 1 min read

शहर

शहर की चकाचौंध रौनक, मजबूर करती है।
और हमें अपने गाँव से बहुत दूर करती है।

हमारे ख़्वाबों के शहर जैसा, शहर नहीं ये,
यहाॅं की आब-ओ-हवा हमें,मग़रूर करती है।

झूठ और फ़रेब क्या होता है, हम जानते नहीं ,
यहाॅं हर अदा ईमान को, चकनाचूर करती है।

हमने बुज़ुर्गों को सम्मान देते देखा अब तक,
यहाॅं रिवायत, दौलत को जी हुज़ूर करती है।

हमारे गाॅंव में तीन पुश्तें साथ रहती हैं,
यहाॅं औलाद बड़ी होकर, माॅं को दूर करती है।

बेलग़ाम बैल भी मालिक की इज्ज़त रखता है,
और शहर की तो गाय भी, ग़ुरूर करती है।

संजीव सिंह ✍️©️
(स्वरचित एवं मौलिक)
नई दिल्ली

2 Likes · 2 Comments · 261 Views
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