शहर शहर पसरा सन्नाटा
शहर शहर पसरा सन्नाटा
सब लोग घरों में कैद हुए
बंद सभी खिड़की दरवाजे
खुली हवा को तरस गए
अटक गईं सांसें
सांसों को भी भटक रहे
न देखा था ऐसा आलम
रीति रिवाज सब बंद रहे
नहीं बैंड बाजे बाराती
फेरे भी सुनसान लिए
चला चली की बेला में
न अंतिम दीदार हुए
चले गए चुपचाप जगत से
चार कंधे नहीं नसीब हुए
ऐसे डरावने माहौल में
संस्कार संक्षिप्त हुए।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी