‘शशिधर'(डमरू घनाक्षरी)
दहक दहक तल,
बदन सदन झल
गरल लहर चल,
सकल जगत पर।
दरक दरक धर ,
विकट विपद पर ,
छड़ तप शशि धर,
विष घट रख कर।
गटक गटक गट,
सरपट विष घट,
अचर विचर फट,
धर हट हर हर।
निकस निकस घर,
सुर सरि जल भर,
टपक टपक सर,
गरल शमन कर।।1
धनक धनक धम,
डमक डमक डम,
हर हर बम बम,
शिव शरणम हम।
रिपु का दहन कर,
नयन अगन भर,
मति भय हर कर,
भज शिवम-शिवम।
धर मस्तक तिलक,
जट लटक झटक,
तम गटक फटक,
कर शुभ भुवनम।
रक्ष त्रिभुवन पति,
हर खलन कु मति,
जन क्षति हर यति,
कर पुष्टि वर्धनम।। 2
©
-लेखिका
-गोदाम्बरी नेगी