शरीफजादे
मरने का हुनर
आया ही नहीं
जीने का सलीका
क्या आए!
कुफ़्र से थर-थर
कांपने वाले को
पीने का सलीका
क्या आए!!
चाक गिरेबान
लिए हुए कभी
सहरा की जिसने
न खाक छानी!
उस मुर्दादिल
शरीफजादे को
सीने का सलीका
क्या आए!!
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