शराब मत पीना
कोय दारु ना पियो भाइयों या स घणी खोटी।
छुड़वा दे स या दारु भाइयों मानस की रोटी।।
शुरू शुरू म्ह शौकियां पीवैं फेर होज्यां आदि।
इस दारु के कारण बड़े बड़ां की होगी बर्बादी।
एक दारु कारण रोज टूटैं सँ शगाई ब्याह शादी।
दारू के ऐब तै बढ़ कै ना स कोय बीमारी मोटी।।
देखै दारू के कारण सत्तर बिमारी लाग ज्यां।
टोटा आज्या घर म्ह, सारी ख़ुशी दूर भाग ज्यां।
पी कै दारू करैं लड़ाई पड़ोसी ताहीं जाग ज्यां।
बालकां नै वो रोज पीटै अर बहु की पाड़ै चोटी।।
अड़ोसी पड़ोसी भाईचारे आलै रोज समझावैं।
यारे प्यारे रिश्तेदार पां पकड़ कै उसणै मनावैं।
पर उसकै एक ना लागै सारी सर पर कै जावैं।
नशे की हालत म्ह वो करण लाग ज्या कार छोटी।।
आखर म्ह तंग आ कै घर आली फाँसी खाज्या।
घर उजड़ै पाछै उसकै सारी समझ म्ह आज्या।
घर बाहर कै सारे काम करै हांडे भाज्या भाज्या।
सीखण खातर कविताई सुलक्षणा नै डाँट ओटी।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत