शरद सुहानी
शिशिर ऋतू अब आ ही गई तो इससे मुँह को ढकना क्यूं ।
अब ओखल मे सिर रख दिया तो मूसल से फिर डरना क्यूं ।।
धूल रहित और आद्र सहित,ठंडी पवनो का बड़ा कमाल।
बर्फ गिरे जल धारा आती, बंद रहे पंखों की चाल।।
दिन छोटे और रात बड़ी,लिए रजाई सोते हैं,
दिन निकला तो चादर जर्सी, सुटेड बूटेड होते हैं ।।
काफी चाय की चुस्की लेते,धूप सिकाई होती है,
कई तरह के रोगों की भाई मुफ्त दवाई होती है।।
सेब,संतरे,किन्नू,नींबू सभी रसीले टॉनिक आए,
गाजर,मूली,लाल टमाटर,मेथी,सरसों पालक लहराये ।।
जितना खाओ स्वस्थ पचाओ फुर्ती चुस्ती संग आती है,
रंगारंग के प्रोग्रामो में महफिल भी रंग लाती है ।।
नए विवाहित जोड़े घूमे, लेते पहाड़ों का आनंद,
झरने नहावे बर्फ में खेले,पिकनिक बीवी के संग संग।।
कितनी अच्छी सेहत बनती, जब रहे ठिठरते सर्दी में,
धरती तप्ती थी गर्मी से,रब ने ऋतु बदली हम दर्दी में ।।