शरद ऋतु
शरद ऋतु
1
आया भादो धो गया , पेड़ों से सब धूल
क्वार बना इस हेतु ही , सुंदरता का मूल
सुंदरता का मूल , आज है हर वन लगता
उपवन की छवि देख , सहज मन का दुख भगता
देख मनोहर दृश्य , आज सबने सुख पाया
नाच रहे सब लोग , शरद अपना रितु आया
2
जैसे ही पावस गया , सावन भादो मास
प्रातः मन को भा रही , शरद काल की घास
शरद काल की घास , के सभी पर्ण – पर्ण पर
बना रखी हैं ओस , रात में आकर निज घर
प्रातः जिसपर सूर्य रश्मि दिखतीं हैं कैसे
नभ के तारे आज सजे हों भू पर जैसे
3
उपवन में बेला खिले , गेंदा के सब फूल
पुष्प चमेली के बने , सुंदरता का मूल
सुंदरता का मूल , वाटिका में है जैसे
जल के ऊपर आज , कमल मुस्काते वैसे
शरद काल का दृश्य ,देख कर भरे नहीं मन
हरे भरे सब ओर ,आज दिखाते वन उपवन
4
आते मास कुवार के , पके खेत में धान
दृश्य देख यह झूम कर , नाचें सभी किसान
नाचें सभी किसान , साफ खलिहान बनावें
रखकर व्रत नवरात्र ,सभी माँ के गुण गावें
पूजा करते और , कृषक खेतों में जाते
काट पीट कर धान , सभी लेकर घर आते
5
भाई कार्तिक कृषक को , तनिक न दे आराम
वह तेली के बैल सा , लेता निसदिन काम
लेता निस दिन काम , धान की होती कटनी
कटनी के पश्चात , दबाकर दँवरी – पिटनी
कहे साथ ही साथ , खेत की करो जुताई
आलू , गेहूँ आदि , तुरत बोना है भाई