शरद ऋतु के जंगल
शरद ऋतु के जंगल
भोर की मुस्काती बेला में
कोहरे की पतली सी चादर में
रवि रश्मि के स्वागत को आतुर
घने घने से मिले मिले से
शांत भाव से खड़े हुए से
कुछ ठिठुरते से लगते हैं
कुछ कपकपी करते से
एक अबोध शिशु की भाँति
कितने निश्छल लगते हैं
शरद ऋतु में घने जंगल ।
धूप बिखरते ही हँसते से
ओस कणों से मुँह धोकर
हरे भरे खिले खिले से
मस्तमौला पवनों के संग
सर-सर सर-सर मस्ती करते
शरद ऋतु में मस्त जंगल ।
साँझ ढले वन तपस्वी से
लगते मानों तप करते से
या फिर हैं कुछ सहमे सहमे से
रात रानी से डरे हुए से
साँय साँय की आवाज़ों से
हो भयभीत सोए हुए से
शरद ऋतु के भरे जंगल ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली