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26 Sep 2024 · 1 min read

शम्स’ गर्दिश जो यूं ही करता है।

शम्स’ गर्दिश जो यूं ही करता है।
रोज़ उगता है, रोज़ ढलता है।

जान लेवा है दर्द इसका भी,
दिल मेरा नीम-सोज़ लगता है।

ज़िन्दगी कुछ नहीं हकीकत में,
यह दिया चार दिन ही जलता है।

उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
दिल मुझे आब- रोज़ करता है।

उसका कैसे यक़ीन कर लूं मैं,
जो मुझे रोज़-रोज़ छलता है।

फ़ौज़िया नसीम ‘शाद’

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