शम्स’ गर्दिश जो यूं ही करता है।
शम्स’ गर्दिश जो यूं ही करता है।
रोज़ उगता है, रोज़ ढलता है।
जान लेवा है दर्द इसका भी,
दिल मेरा नीम-सोज़ लगता है।
ज़िन्दगी कुछ नहीं हकीकत में,
यह दिया चार दिन ही जलता है।
उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
दिल मुझे आब- रोज़ करता है।
उसका कैसे यक़ीन कर लूं मैं,
जो मुझे रोज़-रोज़ छलता है।
फ़ौज़िया नसीम ‘शाद’