शमशाद शाद की एक खूबसूरत ग़ज़ल
चलो चल के उनके सितम देखते हैं
शुजाअत का क्या है भरम देखते हैं
कन-अँखियों से देखे है हर कोई उस को
खुली आँखों से सिर्फ हम देखते हैं
निगाहों से मस्ती लुटाते हैं सब पर
बस इक हम हैं जिनको वो कम देखते हैं
वो हासिल नहीं ज़ीस्त में दर-हक़ीक़त
तभी उसको ख़्वाबों में हम देखते हैं
करे ख़ाक या कि ये गुलज़ार कर दे
रह-ए-इश्क़ के ज़ेर-ओ-बम देखते हैं
अगर दाव पर हैं वफ़ाएं हमारी
तो खा कर तुम्हारी क़सम देखते हैं
हमें पास-ए-इज्ज़त, उन्हें ख़ौफ़-ए-दुनिया
“न वो देखते हैं न हम देखते हैं”
मेरा दिल तो उन पर फ़िदा है मगर ‘शाद’
वो हैं कि मुझे मोहतरम देखते हैं
शमशाद शाद, नागपुर
9767820085