शब्द
मंच को नमन
विषय – शब्द
विधान = 16/14
वर्णमाला की फुलवारी से, सजी चमन क्यारी क्यारी।
शब्द -शब्द की इस बगिया में ,वाक्य लहर प्यारी- प्यारी।
ज्वारें उठती नित पूनम की, शब्दों के इस सागर में।
तृष्णा भावों की भरती है, अनहद सी इस गागर में।
शब्दों की महिमा क्या गाएं ,गुण गाते उद्गारों में।
शब्द -शब्द में प्राण बसे हैं, जड़ चेतन के सारों में।
मूक बधिर थी जगती सारी, सहज नहीं थी प्राणों में।
नीरस- नीरस लगता जीवन ,वाक् रहित थी त्राणों में।
विचलित होकर ब्रह्मदेव ने ,देवी का आह्वान किया।
शब्द उठा अनहद वीणा से ,पवन वेग से नाद किया।
झूम उठी कुंज प्रकृति सारी, नीरसता विष दूर हुआ।
बरस उठे नित सोम सुधाकर, अमिय नीर भरपूर हुआ।
चहक उठे खग दल के कलरव, कल-कल करती नदी बहे।
गर्जन करते जलधर के दल ,सर -सर करती पवन बहे।
नित शब्दों के हृदय पटल से, भाव रस की नदी बहे।
तिक्त, क्षारिया ,खट्टा -मीठा ,शब्द रसों का सार रहे।
शब्दों में ब्रह्मा, हरि, शंकर, ओम ब्रह्मांड छाया है।
शब्दों की महिमा अति न्यारी ,कण- कण शब्द समाया है।
ललिता कश्यप गांव सायर डाकखाना डोभा जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश।