शब्दों से श्रद्धांजलि!!
क्या नाम दूं मैं इस व्यथा को,
समझ मैं नहीं पा रहा,
हो गया हूं मजबूर इतना,
कुछ भी कहा नहीं जा रहा।
हुआ ना था मैं आज तक,
लाचार तो इतना कभी,
हो गया हूं आज जितना,
लाचार अब, मैं अभी ।
अपने स्वजनों के सुख-दुख में,
भागीदार होते रहे हैं सभी,
पर मुझको तो यह अवसर भी,
मिल ना पाया अभी,
मेरा सहोदर, मित्र सा,
जन्म से ही हम उम्र था,
कल अचानक चल बसा,
मैं हूं उससे दूर इतना,
अंतिम दर्शन भी ना कर सका।
मन मसोस कर रह गया मैं तो,
ऐसी व्यवस्था पर हूं मैं रो रहा,
जिस कारण से आज मैं तो,
आ जा भी नहीं पा सका ।
अपने प्रिय जन को खोने का,
जो दुःख मुझको हो रहा,
आज मैं समझने लगा हूं,
ऐसे लोगों की व्यथा,
आज जिन्होंने इस व्यवस्था में,
अपना सबकुछ है खो दिया,
जो तो गया है मर,
वह तो इस दर्द से दूर हो गया,
पर जो बचे हुए हैं हम अब तक,
वह दोहरे दर्द से है कराह रहा।।
माफ़ करना यार मुझको,
मैं तेरे दर्द में शामिल ना हुआ,
तू तो चला गया है इस जहां से,
मैं तो अभी यहीं पर हूं फंसा हुआ।
बचपन की यादें हो रही हैं ताजा,
साथ साथ में खेलना, पढ़ना,
कभी रुठ करके,विलग हो जाना,
और कभी एक ही बर्तन में खाना,
कभी लडना,कभी रुठना,
और कभी सहजता से मान जाना,
बार बार याद आ रहा है,
आज मुझको वह जमाना।।
अल विदा मेरे भाई,अल विदा।।
ऐसे लोगों की ््व््व्््व््व््व््व्््व््््व््व््व््व््व्््व््व््व््व्््व््््व््व