शब्दों के अर्थ
शब्द और अर्थ
शब्द हैं
अर्थ हैं
व्यर्थ हैं
एक समय
शब्द होते थे
अर्थ होते थे
व्यर्थ कुछ नहीं
आज
हर शब्द के शब्द हैं
हर शब्द के अर्थ हैं
अर्थ है तो शब्द नहीं
शब्द हैं तो अर्थ नहीं
शब्दों के बाजीगर
अर्थ में तुलते हैं
घर हो या बाजार
अर्थ में ही बिकते हैं।
प्यार के अपने शब्द
रिश्तों के अपने शब्द
अतीव मधुरता हो या
अतीव निकटता प्रिये
‘अर्थ’ ही अर्थ है
बाकी सब व्यर्थ है।
एक कोने में
माँ बाप हैं
एक कोने में
सृजन साधक है
लिखना जानते हैं
बिकना नहीं जानते..?
निर्माता को देखो…!
सब लुटा रहा है
परदेश भाग रहा है
बच्चे हैं वहाँ…
वहाँ अर्थ है, किंतु
शब्द नहीं…??
यहाँ शब्द हैं
निःशब्द हैं।।
सूर्यकांत