शब्दों की सौगात…
मै तो अकेली हूँ…. मेरा वजूद क्या हैं….
हरदम ये सोचती हूँ….
दुनिया हैं बहुत बड़ी लेकिन इसमें अकेली मैं खड़ी,
सोचते सोचते मै अल्फाजो के चक्कर में खोई,
मैंने अल्फ़ाजों को मिलाया तो,
एक खूबसूरत सा नग्मा पाया,
मैंने उस राह को पकड़ लिया,
मानो जीने का एक हसीन पथ मिल गया,
शब्दों की मुझको न कोई सौगात मिली,
बस मन के मन्दिरमें वो मौजूद थे सभी,
मैंने उनको छेड़ा तो वो सैलाब बनके उमड़ पड़े,
कलम कागज लेकर, मैं लेखन रुचिमे डूब गई…!!!