शब्दों का संसार
पास हमारे है लाखों शब्दों का संसार।
फिर भी कहीं जुड़ न पायें दिल के तार।
अंदर ही अंदर घुटती उम्मीदें हैं बेशुमार।
मोबाइल युग में कौन लिखे चिट्ठी उस पार
कौन सजनिया प्रेम-पत्र का करें इंतज़ार।
दो ऊंगली घुमाई और हो गया इकरार।
डाकिया आकर अब न खटखटाए द्वार।
बस निराश बैठा रहें अम्मा का प्यार।
गिले शिकवों से प्यारा लगता था संसार
अब एक ब्लाक से हो जाए बेड़ा पार।
सुरिंदर कौर