शब्दहीन स्वर
शब्दहीन वे मीठे स्वर तेरे
स्पंदित कर रहे आज भी मन को मेरे।
खो जाता हूं मृदुल याद में नित
जब आते हैं मलय समीर के शीतल झोंके
खिल के झूमती नव कलियां सुध खोके,
तुम कभी नहीं थे न हैं और न होंगे
फिर लाती है क्यों ये तितली संदेशे तेरे।।
मेरे स्वप्न की वह सुन्दर सी काया तेरी
है पूरी तरह सुरक्षित मन मंदिर में मेरे
सजा थाल पूजा के नित करता हूं फेरे
मंडराता हूं तेरी छाया के चंहुदिश यूं
ज्यों मौन शिखर को प्यासे मेघ रहते हैं घेरे।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम