शब्दसाधक की अभिलाषा
शारदे माँ शक्ति दें तो
एक पहल ऐसी करूंगा
‘शब्द’ की ही औषधि से,
कष्ट सब-जन के हरूँगा !!
नित करूंगा साधना मैं
लोक के कल्याण हेतु,
दम्भ, ईर्ष्या, छल-कपट को
पास मैं आने न दूंगा !!
करूंगा करबद्ध होकर
भानु से बिनती निशा भर
और उनकी ज्योति को,
चिरकाल तक जाने न दूंगा !!
हर जतन ऐसा करूँगा
गुंथे जब तक हार सुन्दर,
तब तलक स्वच्छंद मन के,
फूल मुरझाने न दूंगा !!
नित नवल सुर-गीत से
गुणगान कर दूँ मातृभू का,
पश्चिमी दूषित पवन के
गीत मैं गाने न दूंगा !!
मुझे क्या है काम आखिर
चमचमाती रोशनी से?
टिमटिमाये दीप चाहे,
तिमिर को छाने न दूंगा !!
– नवीन जोशी ‘नवल’
‘सर्वाधिकार सुरक्षित’