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4 Feb 2021 · 1 min read

शब्दसाधक की अभिलाषा

शारदे माँ शक्ति दें तो
एक पहल ऐसी करूंगा
‘शब्द’ की ही औषधि से,
कष्ट सब-जन के हरूँगा !!

नित करूंगा साधना मैं
लोक के कल्याण हेतु,
दम्भ, ईर्ष्या, छल-कपट को
पास मैं आने न दूंगा !!

करूंगा करबद्ध होकर
भानु से बिनती निशा भर
और उनकी ज्योति को,
चिरकाल तक जाने न दूंगा !!

हर जतन ऐसा करूँगा
गुंथे जब तक हार सुन्दर,
तब तलक स्वच्छंद मन के,
फूल मुरझाने न दूंगा !!

नित नवल सुर-गीत से
गुणगान कर दूँ मातृभू का,
पश्चिमी दूषित पवन के
गीत मैं गाने न दूंगा !!

मुझे क्या है काम आखिर
चमचमाती रोशनी से?
टिमटिमाये दीप चाहे,
तिमिर को छाने न दूंगा !!

– नवीन जोशी ‘नवल’

‘सर्वाधिकार सुरक्षित’

Language: Hindi
2 Likes · 317 Views
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