शबे दर्द जाती नही।
शबे दर्द जाती नही खुशी की सहर आती नही।
जाने क्यूं जिंदगी अब वक्त सी गुजर पाती नही।।
तमाम उम्र सफ़र में रहा मुसाफिर सा बनकर।
आंखे भी जानिब ए मंजिल की डगर पाती नही।।
सीना सीख लिया है मैने अपने गमों को अंदर।
खुशियां आंखों में अश्को की लहर लाती नही।।
कैसे बुझे तिश्नगी आब की सेहरा में परिंदे की।
आसमानों से बारिश की कोई ख़बर आती नही।।
देखो जंग ने क्या हालत कर दी है शहरों की।
खाली पड़ी है बस्तियां जिंदगी बशर पाती नहीं।।
दिल्लगी में न टूटे दिल तो सच्चा इश्क कैसा।
चलती रहती है जिंदगियां हमसफर पाती नही।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ