शबरीमला पर यह कैसा अधिकार ?
शबरीमला पर यह कैसा अधिकार ?
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रयोग करते हुए आज एक बात कह रही हूँ जो कि भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और आस्थाओं का विषय है | लेकिन साथ ही साथ विवादों का विषय भी रही है | और यह विषय जुड़ा है केरल के विश्वप्रसिद्ध “शबरीमला मन्दिर” से, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में लिये गये अपने भौतिक और एकतरफा दृष्टिकोण के फैसले से शबरीमला मन्दिर में बिराजे “अयप्पन देेव” के निजी अधिकारों पर कुठाराघात कर दिया |
अब उस फैसले की सार्थकता या निरर्थकता को जानने से पहले या यह बात करने से पहले कि विवाद का मुद्दा क्या था और फैसला क्या लिया गया, हम यह जानते हैं कि इस मन्दिर की परम्परा के इतिहास के साथ क्या वजह और कौन सी कथा जुड़ी हुई है, जिसके कारण मन्दिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था |
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम् से 175 किलोमीटर दूर पंपा नाम का स्थान है और वहाँ से 4-5 किमी. की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्याद्रि पर्वत श्रंखलाओं के घने जंगलों के बीच समुद्र तल से लगभग 1000 मीटर की ऊँचाई पर “शबरीमला मन्दिर” स्थित है | मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है जहाँ प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं | शबरीमला को वैष्णव और शैव भक्तों की अद्भुत कड़ी माना जाता है | यदि पौराणिक मान्यता देखी जाये तो “कंब रामायण”, “महाभागवत” के अष्टम स्कंध और “स्कंद पुराण” के असुरकाण्ड में वर्णित शिशु शास्ता के अवतार हैं- “अयप्पन”| कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया तो शिवजी और मोहिनी के मिलन के परिणामस्वरूप स्खलित शिवजी के वीर्य से “शास्ता” का जन्म हुआ | अब चूँकि देखा जाये तो यह सम्बन्ध वैवाहिक विधान में नहीं था अतः शास्त्रों के पवित्र नियमों के अनुसार वैध परम्परा द्वारा उत्पन्न जायज़ सन्तान नहीं माना जा सकता, हालाँकि वे शिवपुत्र होने के कारण पवित्र हैं | चूँकि शास्त्रों में नारी को अत्यंत पवित्र देवी का दर्जा दिया गया है और “मनु स्मृति” तथा “ब्रह्मवैवर्त्त पुराण” जैसे महान शास्त्रों में “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” जैसी सूक्तियों से नारी की पवित्रता का महत्त्व दर्शाया गया है अतः स्त्रियों को इस मन्दिर से दूर रहने का विधान दिया | किन्तु अब स्त्रियों को तो पुरुषों से होड़ करके इस मन्दिर में भी जाना है बिना किसी परम्परा पर विचार किये | और वैवाहिक जीवन जैसे पवित्र रिश्ते की बात की जाये तो उसको तो सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 भंग करके वैसे ही खण्डित कर दिया है | बिना विवाह के किसी स्त्री या पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना अवैध या महान पाप कहा जाता है, जो पशुकृत्य है | और प्रेम में शारीरिक वासना को महत्त्व नहीं दिया जाता लेकिन यह तो प्रेम नहीं बल्कि केवल कामवासना पूर्ति है, जिसको अब कानूनी स्वीकृति मिल गई है |
हमारे शास्त्रों में इस प्रकार बनाये गये सम्बन्धों को महान पाप कहा है, क्योंकि यह पवित्र प्रेम नहीं बल्कि यह जघन्य और निम्न कोटि की हवस मात्र है | भारतीय संविधान या कानून के आदिजनक महाराज मनु द्वारा रचित “मनु स्मृति” में जीवन के सोलह संस्कार अत्यंत पवित्र और भारतीय संस्कृति के परिचायक माने गये हैं और इनमें से विवाह को अति पावन बंधन माना गया है जो दो परिवारों को और समाज को जोड़ता है, जो महान ग्रहस्थ जीवन की नींव होता है, वेदों में जो पहला वेद “त्र-ृग्वेद” है, उसके सर्वप्रथम मंत्र में “अग्नि” का उल्लेख है, जिसको अत्यंत पवित्र माना गया है और उसी पवित्र अग्नि को, समाज को तथा माता पिता को साक्षी मानकर इस पावन रिश्ते की शुरुआत होती है | अब चूँकि यह अनिवार्यता ही भंग हो गई है तो हमारी महान भारतीय संस्कृति भी जल्द ही नष्ट हो जायेगी | लोग किसी के भी साथ मात्र पारस्परिक सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाकर अपनी हवस पूरी करने लगेंगे | लोग स्वेच्छाचारी और व्यभिचारी हो जायेंगे फिर पशुओं में और इंसानों में अंतर ही क्या रह जायेगा?
खैर छोड़िये “शबरीमला मन्दिर” में न जाने का यह प्रथम कारण तो स्त्रियों को समझ ही नहीं आयेगा | तो हम दूसरा कारण भी जान लेते हैं | हमारी भारतीय वैदिक परम्परा में चार आश्रम होते हैं- ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और सन्न्यास | और इनमें से किसी भी आश्रम में रहने वाले व्यक्ति को पूरी शुद्धता से पालन करना चाहिये | चूँकि “अयप्पन” ब्रह्मचारी अतः अपने ब्रह्मचर्य नियम के अनुसार वे नहीं चाहते कि कोई स्त्री उनके मन्दिर में आये | तो फिर हम लोग ज़बर्दस्ती क्यों किसी की ब्रह्मचर्य परम्परा को तोड़ना चाहते हैं?
माना कि आज स्त्रियाँ धारा के विपरीत तैरकर पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं लेकिन क्या मात्र अपनी एक ज़िद को पूरा करने के लिये किसी आश्रम परम्परा का खण्डन करना सही है? जैसे कि कौन मेरे घर में आये और कौन न आये यह मेरी स्वेच्छा और मेरा अधिकार है | यदि कोई मेरी इच्छा के बिना ज़बर्दस्ती मेरे घर में घुसा आ रहा है तो क्या यह उसका अधिकार है? और क्या यह सही है? और अब कानून इसमें फैसला सुना दे कि इनकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी इनके घर में जा सकता है, तो क्या कानून का यह फैसला सही होगा?
चूँकि “अयप्पन” ब्रह्मचारी हैं इसीलिये उनके ब्रह्मचर्य नियम के अनुसार वे चाहते हैं कि उनके घर में पुरुषों के अलावा केवल छोटी बच्चियाँ आयें जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें आयें जो इससे मुक्त हों | अब आप लोग ज़बर्दस्ती उनके घर में जाना चाहते हैं तो क्या आप सही हैं? लेकिन आज के समय में स्त्रियाँ बिना किसी अन्य बात पर ध्यान दिये हर कार्य में बस पुरुषों से होड़ करना चाह रही हैं | अब आप ही बताईये कि यह आपकी इच्छा होगी न कि कौन आपके घर में आये और कौन न आये? तो आप सिर्फ अपने गर्व को ऊँचा रखने के लिये “अयप्पन” देव की इच्छाओं पर कुठाराघात क्यों कर रही हैं? क्या कानून के फैसला लेने मात्र से किसी का अधिकार किसी को छीनकर किसी और को दे दिया जायेगा | कृपया स्त्रियाँ समझें कि बिना मकान-मालिक की इच्छा के उसके घर पर ये आपका “कैसा अधिकार”?
-प्रियंका प्रजापति
ग्वालियर, मध्यप्रदेश