वक़्त बड़ा परवान चढ़ा
वक़्त बड़ा परवान चढ़ा ।
बिकने को ईमान चला ।
देश भक्ति की कसमें खाता,
चाल कुटिल शैतान चला ।
लांघ मर्यादाएँ अपनी सारी ,
हवस दरिंदा शैतान चला ।
वो वासना भरा अतिचारी ,
अबोध बालपन रौंद चला ।
सुरक्षित रहे कहाँ अब नारी ,
रिश्तों ने ही जब चीर हरा ।
चुप क्यों सभा सद सभी ,
दर्योधन फिर चाल चला ।
अबला ही रही नारी बेचारी ,
सबला कहता इंसान चला ।
शैतानों के इस मरु वन में ,
लाचार फिर इंसान खड़ा ।
वक़्त बड़ा परवान चढ़ा ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…