वक़्त के धारे जहाँ से क्या बहा ले जाएंगे
वक़्त के धारे जहाँ से क्या बहा ले जाएंगे
सिलसिलों के साथ में हर फ़ासला ले जाएंगे
आए ग़र बातिल चुराने आ के क्या ले जाएंगे
वो हमारे घर से शायद आइना ले जाएंगे
आइने करते हैं दावा जाने किस आधार पर
पत्थरों के शह्’र में ताज़ी हवा ले जाएंगे
ख़ुद मिटाने में लगे हैं मंज़िलों के जो निशाँ
कैसे फिर मंज़िल तलक वो रहनुमा ले जाएंगे
कौन क्या ले जाएगा हमको नहीं इसकी ख़बर
हम सफ़र में साथ में माँ की दुआ ले जाएंगे
बीच दरिया सामने है लश्करे-तूफ़ान जब
हम भी अब ‘आनन्द’ अपना हौसला ले जाएंगे
– डॉ आनन्द किशोर