व्याकुल
माना की तुम कृष्ण हो मैं सुदामा ही सही,
पर मेरा प्यार तुम्हारें लिएँ राधा, मीरा सा है,
मीरा ने पिया था विष प्याला प्रेम दर्शाने को,
जो थी केवल दरस दीवानी एक झलक पाने को,
राधा थी मुरलियाँ की बांसुर्रियाँ की दीवानी थी,
जो थी केवल प्रेम दीवानी प्रेम नटखट का पाने को,
प्रेम बड़ा था इसलिए राधा का नाम पहले आता है,
आपसा तो कोई नहीं जो इस क़दर प्रेम में तड़पाता है,
छिपा के दिल के अरमानों को कौन किसे यूँ रुलाता है,
अर्सा बिता युग बिता अब तो देहलीला मर मिटने को है,
आजाओं अब तुम ज़िन्दगी की सहर ठलने को है,
प्यार है हमकों तुम से बेपन्हा दिल मिलने को आतुर व्याकुल हैं।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”