व्याकुल हुआ है तन मन, कोई बुला रहा है।
गज़ल
221…..2122…..221….2122
व्याकुल हुआ है तन मन, कोई बुला रहा है।
है कौन हौले हौले, दिल में समा रहा है।
खिंचती ही जा रही हूं, बस में नहीं है तन मन,
दिल जां जिगर मेरा सब, वो ले के जा रहा है।
वो है जहां का छलिया, चितचोरी काम उसका,
पग जा रहे उधर ही, बंशी बजा रहा है।
बच्चे बड़े या बूढ़े, नर नारी सब हैं पागल,
मोहित किया है सबको, जादू सा छा रहा है।
खुल जाए आंख सबकी, ऐ मौला तू करम कर,
बच्चों की जिंदगी पर, भी साया आ रहा है।
जिसको खुदा समझते, थे लोग घर के सारे,
वो सब ठगे गये हैं, दिखने में आ रहा है।
प्रेमी करो जो उल्फत, पहचान कर खुदा की,
इंसा खुदा से बढ़कर, खुद को दिखा रहा है।
……..✍️ प्रेमी