व्याकुल तू प्रिये
क्यों होती है व्याकुल तू, प्रिये मैं तेरे हृदय में रहता हूँ,
तू यहाँ वहां क्यों खोज रही, तेरे अंतर्मन में रहता हूँ …………………
तेरे केशों की काली घटा में, मेघाच्छादित मनमोही छटा में
तेरे गोरे तन की आभा में, तेरे अधरों पर मैं ही हंसता हूँ ………..
तू रहती मेरे ध्यान मगन, तेरी सच्ची मेरी प्रीत लगन
क्यों व्यथा में डूबे तेरा मन, मैं तेरी आँखों में रहता हूँ ………………..
इस चेहरे का सौम्य रूप, तेरे माथे की मैं ही खिली धूप
मैं तेरी झील का नील कमल, मैं बन के सरोवर वहता हूँ ………….
तेरे सांसों की खुश्बू में, कोशिका और रक्त वाहिनी में
तेरा हर भाव मेरा ही तो है , तेरे रोम रोम में बसता हूँ ……………..
सत्य है ये अतिश्योक्ति नहीं, मेरे बिना अस्तित्व नहीं
क्यों विरहा की पीढ़ कहे, मैं तो स्मरण में रहता हूँ …….