व्यस्त जिन्दगी
जाल है
जिन्दगी का
फैली है
भीड़ भाड़
डर है
दुर्घटनाओं का
है कैसी
विकटता
व्यस्त है
हर कोई
भागती दौड़ती
जिन्दगी
कमाने की
जद्दो-जहद
भाग दौड़
मची है
हर तरफ
यह हैं
बड़े शहरों के
पुराने बाजार
बनाये रखी है
पहचान
इन बाजारों ने
माॅल
सुपर बाजारों
के बीच
जिन्दा रखा है
आम आदमी को
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल