व्यक्तिगत न्याय
एक अबोध बालक
इश्क एक दिन का
फजीता 100 दिन का
ऐसे इश्क से
तौबा करुँ ।
मैं खड़ा अकेला
ब्रह्माण्ड में
किस किस का
एहसान भरूँ ।
प्रीति के उन्मान
अनेकों
सबके अपने
अपने वेलेंटाइन ।
ऐसी आपा धापी में
भईय्या क्यूं न
खुदा से प्रेम करुँ।
सुना है प्रेम करते हैं
जिस से , क़सम खाकर
निभाने की सात जन्म
पलटते हैं फिर किसी
और की खातिर
कि जान लेकर चुकाते हैं
इसीलिए तो कह रहा हूँ
इश्क एक दिन का
फजीता 100 दिन का
ऐसे इश्क से
तौबा करुँ ।