‘व्यंग्य बाण’ (विष्णु बोल रहा है)
दुनिया की रित मेरी, समझ ना आए आज
अपनी-अपनी ढपली ,अपने-अपने राग।
ये विष्णु बोल रहा है कि ये क्या हो रहा है?
लड़की तोड़े मर्यादा, चले लड़का बिगड़ी बाट
नाक बिठा ली स्टील की, अब बिगड़े कैसे ठाट।
ये विष्णु बोल रहा है कि ये क्या हो रहा है?
फैशन की होड़ में, नहीं कपड़े की कोई नाप
जितने छोटे पहन के नाचे, उतनी इज्जत आप।
ये विष्णु बोल रहा है कि ये क्या हो रहा है?
माता-पिता कुछ नहीं, ना कोई बड़ा है भैया
सबकी जुबान पर एक नाम, सबसे बड़ा रुपैया।
ये विष्णु बोल रहा है कि ये क्या हो रहा है?
रिश्तो का कोई मोल नहीं, न इज्जत का हे भाव
घर के बूढ़े बोझ लगे, न उनकी कोई चाव।
ये विष्णु बोल रहा है कि ये क्या हो रहा है?
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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