नेताजी का चुनावी साल
दिखाई दिए नेताजी बरसों बाद, गली मुहल्ले मे,
लगता हैं आज,फिर से ,चुनावी साल आ गया।
गरीबी, महंगाई और,किसानों की आत्महत्या
मुद्दों से भटकाने, कर्ज माफी का पैगामआ गया।
कीचड़, पत्थर,से सनी होती, गली जो मुहल्ले की
रातोंरात,सड़क बनने का, आदेश आ गया।
जल न पाता था चुल्हा, जिस झोपड़ी में कभी
चुनावी काफ़िला वहाँ,आज तोहफे ले के आ गया।
बेरोजगारी का मुद्दा अभी, पांव न पसार सके
सभी युवाओं को प्रचार मे,चुनाव के लगा दिया।
भ्रष्टाचार से मुक्त कभी, वो भारत न बना सके
आधी रात को माल का,बक्सा ही भिजवा दिया।
शराबबंदी का मुद्दा था,जिसके घोषणा पत्र में
वो पुरे गांंव के लिए ,आज शराब ले के आ गया।
मंदिर-मस्जिद के झमेले मे,उलझाने जनता को
ये मुद्दा घोषणा पत्र मे,फिर से उतारा गया।
गैर पार्टियों की नाकामी गिन,कीचड़ उछाल कर
खुद बेदाग ,सफेद कुर्ते मे,भाषण कहा गया ।
कर्मचारियों के ओ पी एस से,कर्ज बढ़ेगा देश पर
ये कहकर ,एम एल ए की पगार को बढ़ा दिया।
देश सेवा भरी नेताजी मे, ऐसी,कुट-कुटकर
टिकट न मिला तो,पार्टी ही बदल लिया ।
स्वरचित तथा मौलिक रचना
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होशंगाबाद (म. प्र.)