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2 Mar 2022 · 1 min read

व्यंग्य क्षणिकाएं

तन ने बाजार
में
कीमत लगाई
हाथों-हाथ
बिक गया।।
मन तो पागल
था
बिना कीमत
लुट गया।

2
सभ्यताओं के
स्टॉल पर कोई
नहीं आता
क्योंकि यहाँ
तमाशा नहीं होता।

3
उधार की संस्कृति
कब तक चलेगी..?
जब तक जाने जहाँ
यह बहार चलेगी।।

4
अंदर से कुछ
बाहर से कुछ..हो
यह सियासत भी..
मियां!
कहॉं से कहाँ
पहुँच गई।।

5
सब नाच रहे हैं
तुम भी नाच लो
अस्मिता ने घूंघट
छोड़ दिया है।।

सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
333 Views
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