वो हैं , छिपे हुए…
वो हैं , छिपे हुए…
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वो है ,
छिपे हुए…
कुछ इस तरह से मकान में।
पहचानना मुमकिन नहीं ,
अपने वतन हिन्दुस्तान में ।
मेरे लहु में जोश है ,
अहल-ए-वतन कुर्बान की ।
उनके लहु में आक्रोश है ,
हैवानियत मुस्कान की।
सारा जहाँ है रो रहा,
जज्बा लिए जज्बात की।
साजिशें वो कर रहे ,
शोलों भरे बरसात की।
कैसे कहुँ मुख बंद है ,
इंसानियत शर्मशार है ।
बागीपना लहु बस गया ,
इतिहास में है सब कुछ लिखा ।
अभिप्राय बस तुम जान लो_
हो जाए यदि देश खंड-खंड ,
दिल होगा उनका बाग-बाग ।
भारत की सीमा यदि हो अखंड ,
दुःख होगा फिर उनको प्रचंड ।
अभी समय है उन्हें पहचान लो ,
दिल की गहराईयों में जान लो ।
मुखौटे लगा वतन प्रेम का ,
कर देंगे सफाया हिन्दुस्तान का ।
आरज़ू बस ये ठान लो ,
हर सांस देश के नाम हो ।
उंगली उठे यदि खुद्दारी पे ,
तब खंजर चुभे गद्दारी पे।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०९ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष ,षष्ठी , गुरुवार ,
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201