वो सपने सलोने, वो हंसी के फुहारे। वो गेसुओं का झटकना
वो सपने सलोने, वो हंसी के फुहारे। वो गेसुओं का झटकना, यूं चलना मटकना। कहो ना कहां रिश्क है, कमबख्त इश्क है।। स्वरचित:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”
वो सपने सलोने, वो हंसी के फुहारे। वो गेसुओं का झटकना, यूं चलना मटकना। कहो ना कहां रिश्क है, कमबख्त इश्क है।। स्वरचित:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”