वो शाम
वो शाम जब भी आँखो से गुजर जाती है
जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ जाती है !
ओस के सर्द होठों को चूमकर जैसे कोई
सुबह की पहली किरण मचल मचल जाती है !!
शर्मसार हो गयी थी तमन्नाओं की दुल्हन
मदहोश तेरा वो आलम देखकर !
जीस्त की हर इक लड़ी झूमी थी
तेरे बहकते होठो का फसाना सुनकर !!
लरजते होठो के हरेक अन्दाज की कसम
लगा था जैसे धड़कने वक्त की सो गयी !
फिजाए भी चुप होके सुनने लगी थी बयां तेरा
अफसानों के शहर में जिन्दगी भी थी खो गयी !!
मेरे वजूद से घुलमिल गया है वो नजारा
खुश्बू उसकी हरेक साँस में बस गयी है !
चुरा लिए हैं मैने वक्त से यह लम्हे
तेरी अमानत अब ये मेरे पास हो गयी