वो लड़कियां
वो लड़कियां जो
अब भी हैं
पर हमारी ज़िन्दगियों में नहीं
दूर हैं एक बहन होने से या
एक बेटी
पर अब भी किसी की बहू
किसी की बीवी हैं और किसी की माँ
थोड़ी ज़िद्दी, थोड़ी बागी
थोड़ी हिम्मती सी
हर ज़ख्म पर चुप रह जाने वाली
हर महरूमी पर
मुस्कुरा जाने वालीं
जब खड़ी हुईं खुद के लिए
खुद पर लिए जाने वाले फैसलों के खिलाफ
तो वही हर तमाशे पर
चुप रह जाने वाली लड़कियां
निकाल दी गईं
सबकी ज़िन्दगियों से
और आज भी एक कसक लिए
खुद की ज़िंदगी जीती
वो बागी लड़कियां खुश हैं
पर उनके अपनो के लिए
वो जैसे थीं ही नहीं