वो लड़की
जब भी मायके आती हूँ
मिलना होता है एक छोटी सी लड़की से।
खिड़की से बाहर झांकती हूँ
तो दिखाई देती है वह छोटी सी लड़की
जेठ दुपहरी में, नीम के पेड़ के नीचे
सहेलियों के साथ गिट्टे खेलते
कभी चारपाई पर चुन्नी का पर्दा टाँग कर
अपनी गुड़िया के साथ घर घर खेलते।
पूजा घर में माँ के पीछे
ज़ोर ज़ोर से आरती दोहराती
दिखाई देती वो लड़की।
कभी घुंघरू बांध नाचती फिरती है वो
“बिंदिया चमकेगी चूड़ी खनकेगी” पर।
कभी पिता की बाहों का तकिया बनाए
उनके पेट पर अपनी टांगे फैलाये
निश्चिंत सोती दिखती है वो लड़की।
भाई- बहन का प्यार बटोरती दिखती है
चुलबुली, चंचल ,शरारती सी लड़की।
उसे देख मैं भी बच्ची बन जाती हूँ
नाचती हूँ कूदती हूँ उसी की तरह।
कुछ दिन बाद लौट आती हूँ मैं अकेले
क्योंकि वो मेरे साथ कभी नहीं आती।
और मैं फिर बन जाती हूँ……
समझदार,परिपक्व,धीर-गंभीर
सुलझी हुई लड़की!!
**** धीरजा शर्मा****