वो रोक सकें रस्ता, हिम्मत न अँधेरों में।
गज़ल
221…….1222…….221…….1222
वो रोक सकें रस्ता, हिम्मत न अँधेरों में।
तम चीर के रख देंगे, दम है जो उजालों में।
मत वक्त करो जाया, गर वक्त पे करना कुछ,
हल ढूंढ निकालो तुम, उलझो न सवालों में।
पढ़ लिख के जमाने में,कितने ही हुनर सीखे,
माँ बाप सिखाते जो, मिलते न किताबों में।
हर एक रहे खुशदिल, दुनियां की मिले नेमत,
है किसको फिकर उनकी, जीते जो अभावों में,
नेता ये नहीं कम हैं, इक नाग से जहरीले,
कोविड है नहीं आता, डर कर के चुनावों में,
इंसान की आंखों में, तुम धूल भी झोंकोगे,
लेकिन न बचोगे तुम,उस रब की निगाहों में।
बस प्रेम की छाया में, कट जाये मेरा जीवन,
रहने दें खुदा मुझको, प्रेमी की निगाहों में।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी