वो मेरे दिल के एहसास अब समझता नहीं है।
वो मेरे दिल के एहसास अब समझता नहीं है,
मै उसकी किताब, वो अब मुझे पढ़ता नहीं है।
मेरी आंखों के मोती गिरते हैं होकर जब बेजान,
वो उन मोतियों को फिर धागे में भरता नहीं है ।।
वो मेरे दिल के एहसास अब समझता नहीं है,
मैं उसका अक्स, वो मुझे खुदमें देखता नहीं है।
उस आसमां का मैं अब तन्हा सा चांद लगता हूं,,
वो बादलों की तरह मुझे आगोश में कसता नहीं है । ।
वो मेरे दिल के एहसास अब समझता नहीं है,
मैं उसका माहताब, वो अब मुझे तकता नहीं है।
इस सारे जहां में एक मैं ही उदास लगता हूं,,
मेरे दिल के हाल वो अब पहचानता नहीं है।।
_फायज़ा तसलीम