वो भी तन्हा रहता है
मैं एक दरिया सा
बहता रहा किसीं
असीमित विशाल
समुंदर की आस में
मगर समुंदर भी
तन्हा था रात में
बिलकुल अकेला..
कोई नहीं था पास में
महान व्यक्तित्व
के साथ भी भीड़
तब तक ठहरती है
जब तक उसके साथ
सूरज सा उजाला होता है…
वर्ना समुंदर सा
‘वो भी तन्हा रहता है’
एक विशालकाय भीड़ में…
©® ‘अशांत’ शेखर
14/05/2023