वो भी क्या दिन थे …( एक उम्र दराज़ की दास्तान )
वो भी क्या दिन थे क्या समां,
जब हम भी कभी थे जवां ।
बढ़िया कद काठी,बुलंद आवाज,
खूबसूरत थे जनाब !हम बेइंतहां ।
दिल था अरमानों से भरा हुआ ,
ज़हन में रहते थे ख्यालात रवां ।
जिस्म में अपार स्फूर्ति थी और ,
धड़कनों में जोश और उमंग नया
मगर अब सब कुछ बदल गया है ,
अब रह गई वो बात भला कहां !
कभी हमारा भी जमाना था,जी!!
कब मानी है नई पीढ़ी ये जवां।
पीढ़ियों का यह बहुत लंबा फर्क ,
सदा बना रहा है और रहेगा यहां ।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर देखा ,
तो सब कुछ बिखर गया यहां-वहां।
जिंदगी की सुबह गुजर गई दोस्तों!
अब ये तो है ढलती शाम का समां।
अब सब कुछ पीछे छूटता जा रहा है,
कुछ ख्वाब,ख्वाईशें कुछ अधूरे अरमां।
अब याद रखने को सिर्फ मौत ,”ऐ अनु !”
चलो!इंतजार में खड़ा है नया कारवां ।