वो बेजुबान कितने काम आया
खेतों में हल चलाया,
संदेशा घर घर पहुंचाया,
सफर हो चाहे दूर का ,
चाहे बोझ का हो ढोना,
तू जानता है निर्भर तुझपे मैं,
तूने कभी न जताया ।
*मैं क्या अर्पण करूं,
तुझे कौन सा मेडल दूं ।
तूने कभी कुछ मांगा नहीं,
मैं युग युग से शुक्रगुजार हूं।।
तू हरदम मेरा भोग बना,
नस नस में तेरा दूध बह रहा,
मेरे लिए तू कोलू का बैल बना,
सर्द हवाओं की ठंड ठिठुरती ,
तू मेरा होकर कंबल बना,
कभी न एहसान जताया ।
मैं क्या अर्पण करूं,
युग युग से गुनहगार हूं ।।
मौसम का मिज़ाज तूने कहा,
तु करता रहा हरदम वफ़ा,
मैंने चाहे कुछ न तुझे दिया,
होकर के भी अबोध जानवर तूने,
सदा लुटाई मुझ पर ममता,
कभी ना हिसाब मांगा,
मैं क्या अर्पण करूं,
मैं युग युग से शर्मसार हूं।।