वो बीते हुए पल
वो बीते हुए पल हमें
अब् याद आते हैं गाँव के।
वो बचपन के दिन हमें
याद आते हैं गाँव के।।
आँगन में नीव का पेड़ था
एक बड़ा हड़ा भरा सा।
बैठे गये वे लम्हे हमें
अब् याद आते हैं छाँव के।।
खेला करते थे ओमी लच्छी के साथ
देर शाम तक।
वो कागज के टुकड़े हमें
अब् याद आते हैं नाँव के।।
कई बार मात दी थी हमने
सुमियां और मजीद को।
उठा पटक के वो दिन हमें
अब् याद आते हैं गाँव के।।
सबेरे ही तोड़ खाते थे हम
आम अमरूद गन्ने भुट्टे
गुस्साते थे बब्बू हमें
अब् याद आते हैं दिन गुनाहों के।।
तपन में भागा करते थे
मीलों तक
दोश्तों के साथ
नुकीली ठूंठों के जख़्म
अब् हमें याद आते हैं पाँव के।।
कितने नासमझ थे हम
याद करके रूह कांपती है।
साहब वो टीस हमें
अब् दर्द याद आते हैं बांहु के।।