वो बारिश
वो बारिश ने खलल डाली ऐसी
की खुद भीग गया तन मेरा
टप टप बारिश ने सुबह से
ही खूब भर के मजाक किया मेरा !!
वो बादल का गर्जना, यूं धमका कर
मेरे जेहन को आ आ कर गरजा कर
मेरे चितवन में अपना शोर सुना कर
भिगो गया, सरे राह घुमा घुमा कर !!
सड़को को तालाब सा बना कर
सोते हुए मेंढक को हंसी बना कर
गेहूं की फसल को लेह लहा कर
कम्पन छुड़ा गया, मुझे यूं भिगो कर !!
वो सुख गया घर उसका, जिस का है पक्का
उस का क्या जिस का घर रहा हमेशा कच्चा
सारी रात वो टपकती बूंदों को निहारता रहा
जैसे मैं, सरे राह बारिश के रूकने की गुहार कर रहा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ