!! वो बचपन !!
बेरोक टोक सा होकर तू
जब गलियों में लहराता था
सारे सपने होंगे पूरे
तू अकड़ के सब को बताता था
थे कहाँ पांव तेरे जमीन पर
तू हवा से शर्त लड़ाता था
न जाने कौन कौन सी बातें
तुझको मुझको सहलाती थीं
फिर अगले ही पल में वो भी
जाने क्यों गुम हो जाती थीं
क्या खाया क्या न खाया
इन सब का तुझको होश कहाँ
तेरी होती थी साँस सी अटकी
ठहरे होते थे दोस्त जहाँ
था अजब जोश, उत्साह नया
थे नए पंख और रक्त नया
पढ़ने लिखने से बैर सा था
मन मे थे जाने कितने सवेरे
कितनी शामें थी मुट्ठी में
सूरज, चंदा थे अंगूठी में
तारों को था तुझ पर नाज़
तुझसे था जैसे उनका बजूद
मात – पिता की था तू शान
उनको था तुझ पर अभिमान
लेकर के चला जब उनके सपने
कहलाते थे जो तेरे अपने
चल फिर से तू उन गलियों में
वो गलियां तुझ को बुलाती हैं
था कितना निश्छल वो बचपन
ये यादें सबको बताती हैं ।
!! आकाशवाणी !!