वो बकरा सजा रहे हैं
कार्यकर्ता आज फिर से तंबू लगा रहे हैं,
फिर से कुछ नए वादे होंगे बता रहे हैं।
तीन-चार साल बाद ऐसे मौके आते हैं,
घोषणाएं होने की उम्मीदें जगा रहे हैं।
पुरानी बातों को कुछ दिन भूल जाईए,
इस बार बिल्कुल नया मुद्दा उठा रहे हैं।
एलान ऐसे होंगे तुम सोचते रह जाओगे,
बस ताली बजाना जैसे हम बजा रहे हैं।
नेताजी परिस्थितियों को बहुत समझते हैं,
बेरोज़गारी हटाने का एक मंत्र बता रहे हैं।
गरीबी और गरीब दोनो को खत्म कर देंगे,
बहुत कुछ फ्री देकर के आलस बढ़ा रहे हैं।
विरोधी भी अपनी पूरी तैयारी के साथ हैं,
भौंहें तान अपना कीचड़ उन्हें लगा रहे हैं।
लाज़मी है वो मौके पे समय से ही न आएं,
देखो तब तक सेवादार पानी पिला रहे हैं।
पार्टी ने अहम जिम्मेदारियाँ दी हैं कुछ को,
वो मंचों पर आकर जनमानस जगा रहे हैं।
सपने देखने-दिखाने में जाता क्या है “अनिल”,
मानो बलि से पहले वो बकरा सजा रहे हैं।
(जनमानस = जनता का मन, आम व्यक्ति की धारणा या मनःस्थिति)
©✍?18/02/2022
अनिल कुमार “अनिल”
anilk1604@gmail.com